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कैसे नीतीश ने लालू को उनके ही जाल में फांस दिया? यूं ही नहीं कहते बिहार का 'चाणक्य'

पटना बिहार का 'चाणक्य' यूं ही नहीं कहा जाता नीतीश कुमार को। उपचुनाव को लेकर तेजस्वी काफी दिनों से पसीना बहा रहे थे। मछली पकड़ने से लेकर खेतों की पगडंडियां तक नाप आए। आखिर में अपने बीमार पिता लालू यादव तक को मैदान में उतार दिया। मगर नीतीश कुमार ने ऐसा पाशा फेंका की लालू की पॉलिटिक्स चारों खाने चित हो गई। नहीं चलेगा 2021 में 2000 वाला फार्मूला बीमार लालू यादव जब दिल्ली से पटना के लिए चले तो उपचुनाव को लेकर उनकी टशन कांग्रेस से चल रही थी। कांग्रेस की कोटे वाली सीट कुशेश्वरस्थान पर आरजेडी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था। इससे नाराज बिहार कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास ने तारापुर और कुशेश्वरस्थान दोनों जगहों से प्रत्याशियों को टिकट देकर गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। लालू यादव ने भक्तचरण दास को 'भक्चोन्हर' बता दिया। कांग्रेस को अपनी पॉकेट की पार्टी समझनेवाले लालू यादव लाल-पीला होकर दिल्ली से पटना के लिए निकले। सीएम आवास में बैठे नीतीश कुमार ने लालू यादव के मूड को बारीकी से भांप लिया। पटना में लालू यादव अपने पुराने स्टाइल में बयान देते रहे। उन्होंने नीतीश कुमार की 'अर्थी' निकालने की बात कह डाली। शायद लालू यादव को इस बात का आभास नहीं हो पाया कि बिहार के लोग कितना बदल चुके हैं। अब उन्हें उटपटांग बातें अच्छी नहीं लगती। जो उनकी हित की बात करेगा, वही राज्य में राज करेगा। 'भक्चोन्हर', 'अर्थी', 'गोली'...और फंस गए 26 अक्टूबर की शाम जब नीतीश कुमार चुनाव प्रचार से लौटे तो पटना एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत के दौरान पत्रकारों ने सवाल पूछा कि लालू जी बोल रहे हैं कि 'अर्थी' निकालने आया हूं। सार्वजनिक तौर पर गुस्सा नहीं दिखानेवाले नीतीश कुमार ने हंसते हुए कहा कि 'वो चाहें तो हमको गोली मरवा दें। बाकी कुछ नहीं कर सकते। अगर चाहें तो गोली मरवा सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते हैं।' दरअसल नीतीश कुमार ने 'गोली' वाला बयान देकर खुद को बहुत ही लो प्रोफाइल होने का अहसास कराया। नीतीश कुमार को पता था कि ये बात सीधे आम-आदमी तक पहुंचेगी। लोगों को 15 साल पहले वाला बिहार याद आ जाएगा। जिसका उन्हें इलेक्टोरल फायदा होगा। जैसा नीतीश कुमार ने सोचा था, हुआ भी बिल्कुल वैसा ही। अगले दिन (27 अक्टूबर) लालू यादव की पहली चुनावी सभा तारापुर में थी, जहां से उनकी पार्टी सबसे आगे चल रही थी। रैली के दौरान लालू यादव दो से तीन बार 'अर्थी' और 'गोली' वाली बात पर सफाई पेश करते रहे। वहां अनाप शनाप बोलते रहे। उन्होंने कहा कि 'नीतीश खुद ही मरेगा, उसको गोली मारने की क्या जरूरत है। मेरे डर से भागा-भागा फिर रहा है।' आम आदमी तक मैसेज पहुंच चुका था। कांटे के मुकाबले में फैसला नीतीश के पक्ष में गया। कुशेश्वरस्थान के साथ तारापुर में भी जेडीयू ने जीत दर्ज की। होमवर्क ठीक से नहीं की तेजस्वी की टीम 2020 विधानसभा चुनाव का लालू यादव या फिर तेजस्वी की टीम ने ठीक से विश्लेषण नहीं की थी। अगर ऐसा होता तो लालू को 'भक्चोन्हर' और 'अर्थी' जैसे बयान देने से बचने की सलाह दे सकती थी। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने अपने पोस्टर से लालू और राबड़ी का फोटो तक हटा दी थी। सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव छाए हुए थे। उन्होंने तो सार्वजनिक तौर पर पिछली गलतियों के लिए माफी भी मांगी थी। आमलोगों ने उनकी सराहना की। उनके प्रति लोगों में हमदर्दी बढ़ी। तेजस्वी ने पूरे चुनाव में जात-पांत के मुद्दों से बचने की कोशिश की। नौजवानों के मुद्दे को उठाया। उन्होंने दवाई-पढ़ाई-कमाई और रोजगार की बात की। सभा में वैसी कोई भी बात कहने से बचने की कोशिश की, जिसमें विवाद पैदा हो। कुछ कहा भी तो उसके लिए सफाई पर सफाई पेश की। आमतौर पर सामाजिक संस्कार है कि अगर कोई गलती के लिए माफी मांगता है तो उसे माफ कर दिया जाता है। तेजस्वी पर सभी जाति-धर्म के लोगों ने भरोसा जताया और बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बना डाला। वोटों की लिहाज से देखें तो सत्ताधारी गठबंधन से उनको सिर्फ साढ़े 12 हजार वोट कम मिले हैं। मगर सत्ता के लिए संख्या चाहिए, जिसमें तेजस्वी पिछड़ गए। लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया, इसमें कोई दो मत नहीं है। उपचुनाव के दौरान लालू यादव अब भी साल 2000 वाला बिहार मानकर चल रहे थे। जिसकी वजह से वो अपनी ही फेंके जाल में फंस गए। 'भक्चोन्हर', 'अर्थी' और 'गोली' में उलझ गए। दूसरी तरफ प्रचार के दौरान नीतीश कुमार अपने एजेंडे पर डटे रहे।
Source navbharattimes

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