DIGITELNEWS पर पढ़ें हिंदी समाचार देश और दुनिया से,जाने व्यापार,बॉलीवुड समाचार ,खेल,टेक खबरेंऔर राजनीति के हर अपडेट

 

भारत में सबसे ज्यादा डायबिटीक, यहां जानिए 'मीठे जहर' से बचने के उपाय

नई दिल्ली मीठी बीमारी की वजह से शरीर को बहुत परेशानी होती है। इस मीठेपन के असर को कम करने के लिए डाइट से लेकर पूरे लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करना है? शुगर न हो इसके लिए क्या जतन करने हैं और अगर हो जाए तो क्या करना है? वहीं कंपनियों ने दवाओं के रूप में क्या नया खोजा है? एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती हमें हर दिन 3 से 5 फल और 2 से 3 कटोरी मौसमी सब्जियां जरूर खानी चाहिएअपने देश में डायबीटीक मरीजों की संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं प्री-डायबीटीक स्टेज वाले मरीजों की संख्या भी लगभग उतनी ही है जितनी संख्या में डायबीटीक मरीज हैं यानी डायबीटीज के मरीजों की संख्या अगले 10 बरसों में दोगुनी हो जाएगी। इसमें 30 से 50 साल तक के मरीजों की संख्या भी अच्छी तादाद में है। पर अगर अभी से कोशिश की जाए तो स्थिति को बदली जा सकती है। प्री-डायबीटीक मरीजों को डायबीटीक बनने से रोका जा सकता है और डायबीटीक मरीजों को भी ज्यादा परेशानी से बचाने के उपाय किए जा सकते हैं। कितनी तरह की डायबीटीज?1. टाइप-1 डायबीटीज: डायबीटीज: जब शरीर में इंसुलिन हॉर्मोन बनाना पूरी तरह बंद हो जाता है तब यह बीमारी होती है। भारत में इसके मरीज बहुत कम हैं। अमूमन 4000 में 1 बच्चा। चूंकि इसमें मरीज का शरीर जरा भी इंसुलनि नहीं बनाता इसलिए ग्लूकोज को कंट्रोल करने के लिए बाहर से लगातार इंसुलिन लेना पड़ता है। 2. टाइप-2 डायबीटीज: इसे डायबीटीज मेलिटस (Diabetes Mellitus) भी कहते हैं। भारत दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा डायबीटीज मरीजों वाला देश है। यह मोटापा, गलत लाइफस्टाइल और कई बार बढ़ती उम्र की वजह से होती है। इसमें शरीर में कम मात्रा में इंसुलिन बनता है। जब किसी को पहली बार शुगर आता है तो यह मान लेना चाहिए कि उसके शरीर में 50 फीसदी ही इंसुलिन बन रहा है। अगर इसे सुधारा न जाए तो यह हर साल 5 फीसदी के हिसाब से कम होता जाता है। क्यों होती है यह बीमारी?वैसे तो इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। पर सबसे अहम 7 'S' हैं: Sedentary lifestyle: इसका मतलब है कि हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी बहुत कम है। हम शारीरिक श्रम से पसीना बिलकुल नहीं बहाते। नतीजा यह होता है कि हम जो भी खाते हैं, वह शरीर में चर्बी के रूप में जमा होता चला जाता है। इसी का नतीजा होता है मोटापा। जब मोटापा आ जाता है तो हमारे शरीर में हॉर्मोन्स की कार्यक्षमता काफी हद तक प्रभावित होती है। Stress: तनाव चाहे किसी भी वजह से हो हमारे शरीर के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। सच तो यह है कि स्ट्रेस की वजह से ही पहले बीपी की शुरुआत होती है। जब बीपी लगातार बना रहता है तो शुगर अपनी सीमाएं लांघने के लिए बार-बार दस्तक देने लगता है। Sleep: कहते हैं कि अगर आप अच्छी नींद लेते हैं तो स्ट्रेस से आप दूर क्योंकि तनाव और नींद अमूमन साथ में नहीं होते। हर रात हमारी नींद 7 से 8 घंटे की जरूर हो। Salt: खाने में ज्यादा नमक बीपी बढ़ाने का काम करता है। वहीं नमक शरीर में अतिरिक्त पानी को भी रोकता है। Sugar: चीनी या फिर मीठा ज्यादा खाना भी शुगर को जल्दी बुलाने का काम करता है, खासकर तब जब हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी काफी कम हो। Smoking: वैसे तो स्मोकिंग फेफड़ों और दिल दोनों के लिए हानिकारक है। लेकिन स्मोकिंग करने से यह इंसुलिन की कामकाज को भी प्रभावित करता है। Spirits: अल्कोहल से होने वाली हानि के बारे में हम सभी जानते हैं। इसे पीने के लिए बहाने खोजते रहते हैं। अल्कोहल भी बीपी और शुगर को बढ़ाने की कोशिश में लगा रहता है। इन अंगों पर होता है सीधा असर हार्ट: जिन्हें शुगर हैं। वे अगर इसे काबू में नहीं रखते तो नतीजा दिल की बीमारी के रूप में सामने आता है। शुगर के साथ बीपी और कलेस्ट्रॉल को भी काबू में रखना बहुत जरूरी है। शुगर नसों पर भी असर डालता है। लिवर: शुगर से पूरा शरीर चलता है। हम जो भी खाते हैं, उसे आखिरकार ग्लूकोज (शुगर) में बदलकर ही शरीर उपयोग कर पाता है। जब हम बाहर से अतिरिक्त शुगर खाते हैं या जो शरीर में पहले से मौजूद है, उसका उपयोग सिर्फ मांसपेशियां और लिवर ही करती हैं। जब हम फिजिकल ऐक्टिविटी नहीं करते तो मांसपेशियों में मौजूद शुगर भी लिवर में चली जाती है। लिवर में यह अतिरिक्त शुगर फैट में बदल जाती है। लिवर में ज्यादा फैट जमा होने से लिवर उसे खून में भेज देता है। नतीजतन शरीर में कॉलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। इसलिए ज्यादा मीठा या ऐसी चीजें जिनसे ज्यादा शुगर या ग्लूकोज बने, न खाएं। किडनी: शुगर की वजह से ब्लड सप्लाई कम होने लगती है। इससे किडनी की क्षमता घटने लगती है। कई बार किडनी का साइज दोगुना हो जाता है। ऐसे बचे रहेंगे शुगर सेहर दिन बहाएं पसीना हर दिन 50-60 मिनट की फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर करें। इसमें ब्रिस्क वॉक, साइकलिंग, स्वीमिंग, बैडमिंटन जैसे खेल आदि को शामिल करें। ब्रिस्क वॉक बहुत अच्छी एक्सरसाइज है। इसमें याद रखें कि एक मिनट में करीब 80 कदम चलने होते हैं। इसलिए हर दिन कम-से-कम 10,000 कदम चलने की कोशिश करें। अगर सुबह लगातार वॉक करने का मौका न मिले तो इसे 15-15 मिनट के 3 सेट में पूरा कर लें। वैसे योग करना भी अच्छा है लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह एरोबिक्स की जगह नहीं ले सकता। मेडिटेशन से तनाव कम होता है, ब्लड प्रेशर को काबू रखने में मदद करता है। पसीना निकलेगा तो नींद भी आएगी: जब शरीर थकता है तो नींद भी अच्छी आती है। रात की अच्छी नींद से ही सुबह की बेहतर शुरुआत होती है। फिर पूरा दिन अच्छा गुजरता है। इसलिए हर दिन 7 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है। स्वाद के पीछे ज्यादा न भागेंइस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि खाना पौष्टिक होना जरूरी है, न कि बहुत ज्यादा टेस्टी। यह भी जरूरी है कि हम हर दिन 3 से 5 फल और 2 से 3 कटोरी सब्जियां जरूर खाएं। सब्जियों में तेल व मसालों की मात्रा कम से कम हो। नमक और मीठा कम करें: खाने में अतिरिक्त नमक न लें। एक शख्स को एक दिन में 5 से 7 ग्राम (एक छोटा चम्मच) नमक से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। इसी तरह उसे मीठा भी ज्यादा नहीं खाना चाहिए। खासकर रात में मिठाई खाना ज्यादा खतरनाक है। अगर रात में मीठा खाने की इच्छा हो तो एक इंच का गुड़ खा सकता है। सिगरेट और शराब हैं बड़े दुश्मन: ये पहले बीपी बढ़ाते हैं फिर शुगर को। अगर मोटापा है और इनकी लत है तो समझ लें, शुगर होने का खतरा बहुत ज्यादा है। अगर बीपी और शुगर से बचना है तो इन्हें हाथों और होठों पर नहीं, पैरों के नीचे ही रहने दें। रिफाइंड बंद: चाहे चावल हो, आटे से रिफाइड बना मैदा हो, रिफाइंड ऑयल - सभी को बंद कर दें। प्रोसेस्ड फूड न खाएं। कुदरती चीजें खाएं। किसी जानवर को शुगर नहीं होता क्योंकि वे रिफाइंड चीजें नहीं खाते। वजन घटाएं, राहत पाएंजो शख्स प्री-डायबीटीक स्टेज में है, वह अपने शरीर का 10 फीसदी वजन कम करके खुद को डायबीटीज स्टेज में जाने से रोक सकता है। इसी तरह जिन्हें डायबीटीज हो चुका है, वह भी 10 फीसदी वजन कम करके डायबीटीज पर काबू पा सकता है। बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 18 से 23 के बीच रखें। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजें खाएं। परिवार में अगर किसी को शुगर है तो...n अगर दादा-दादी और मां-बाप दोनों को शुगर है तो होने की आशंका 70 फीसदी n अगर दोनों पैरंट्स को शुगर है तो बच्चे को होने की आशंका 49 फीसदी n किसी एक पैरंट्स को शुगर है तो बच्चे को होने की आशंका 25 से 27 फीसदी अगर पैरंट्स में से किसी एक को डायबीटीज है या खून के रिश्ते में किसी और करीबी को डायबीटीज है तो 30 साल की उम्र के बाद हर साल शुगर टेस्ट जरूर कराएं। तनाव कम करें: जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश जरूर करें लेकिन इसे लेकर तनाव न पालें। अगर किसी चीज का तनाव है तो उससे निपटने के लिए एरोबिक्स करें, मेडिटेशन करें, अच्छा म्यूजिक सुनें और अपनी पसंदीदा हॉबी के लिए वक्त निकालें। शुगर के लिए जरूरी टेस्ट1. ब्लड ग्लूकोज टेस्ट: यह दो बार किया जाता है: खाली पेट (फास्टिंग) और नाश्ता या ग्लूकोज लेने के बाद (पीपी)। फास्टिंग ब्लड शुगर: 70-100 mg/dl: नॉर्मल (रात में खाना खाने के बाद 8-10 घंटे की फास्टिंग जरूर हो। अगर रात में 12 बजे कुछ खाया है तो दिन में 9-10 बजे से पहले टेस्ट न कराएं।) पोस्ट प्रैंडियल (पीपी) शुगर: 70-140 तक mg/dl: नॉर्मल (खाने का पहला कौर खाने के 2 घंटे बाद) 2. HbA1c टेस्ट: इसे हीमोग्लोबिन A1c या ऐवरेज ब्लड शुगर टेस्ट भी कहते हैं। इस टेस्ट से पिछले तीन महीने के ऐवरेज ब्लड शुगर लेवल का पता लग जाता है। इसमें खाली पेट और खाने के दो घंटे बाद का ब्लड सैंपल देना नहीं पड़ता। टेस्ट के लिए सैंपल दे सकते हैं। 5.7 से कम: नॉर्मल, 5.7 से 6.4: प्री-डायबीटिक, 6.5 या ज्यादा: डायबीटिक, ध्यान रखें: टेस्ट से 24 घंटे पहले कॉलेस्ट्रॉल कम करनेवाली टैब्लेट, विटामिन-सी, ऐस्प्रिन, गर्भ-निरोधक दवाएं आदि इस्तेमाल न करें। शुगर होने के बाद अपनाएं इन जरूरी उपायों को, काबू करने में मिलेगी मदद टाइप -1 डायबीटीज डायबीटीज टाइप 1 के मरीजों को ज़िंदगी भर इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है। इन मरीजों खासकर बच्चों को भरपूर डाइट की जरूरत पड़ती है ताकि उनके विकास पर बुरा असर न पड़े। बार-बार डॉक्टर के पास जाने, लगातार इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने और खाने में पाबंदियों की वजह से ऐसे बच्चों को दूसरों से अलग होने का अहसास चिड़चिड़ा, गुस्सैल या निराश कर सकता है। पैरंट्स को इन बच्चों की जरूरतों को ज्यादा बारीकी से समझना चाहिए। टाइप -2 डायबीटीज होने के बाद... लाइफस्टाइल में बदलाव टाइप 2 डायबीटीज में अगर मरीज का शुगर लेवल बॉर्डर पर है और दूसरी दिक्कतें नहीं हैं तो डॉक्टर की सलाह से एक्सरसाइज और लाइफस्टाइल व डाइट में बदलाव के साथ इसे कंट्रोल किया जा सकता है। अगर शुगर लेवल ज्यादा है तो डॉक्टर दवा शुरू करते हैं, जिसे नियमित रूप से लेना होता है। इसके इलाज के लिए अब बेहतर दवाएं आ गई हैं। ये दवाएं हार्ट अटैक के खतरे को 30 फीसदी तक कम करती हैं। ग्लूकोमीटर है कारगरब्लड शुगर मॉनिटर करने के लिए ग्लूकोमीटर की मदद ले सकते हैं। अब मेमरी वाले ग्लूकोमीटर भी मिलते हैं। इनमें पिछले 3 महीने की पूरी रीडिंग सेव रहती है। 1. Accu-Check Active कीमत: 1200 से 1600 रुपये 2. Dr. Morepen BG-03 कीमत: 1200 से 1500 रुपये 3. Dr. Trust कीमत: 1500 से 2500 रुपये नोट: इनके अलावा भी कई दूसरे अच्छे ग्लूकोमीटर उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है। ये हैं कुछ नई चीजें पैच: CGMS यानी Continuous Glucose Monitoring System पैच से लगातार शुगर लेवल पर निगाह रखी जा सकती है। यह पैच बांह में लगाया जाता है और इसमें एक सेंसर लगा होता है। इससे बेहतर मॉनिटरिंग की जा सकती है। इस पैच को 7 या 15 दिन में बदलना पड़ता है। पंप: इंसुलिन पंप से शुगर पर रियल टाइम निगाह रखी जा सकती है। यह पैंक्रियाज की तरह लगातार इंसुलिन शरीर में देता रहता है। अलार्म वाले पंपों में मौजूद अलार्म शुगर बहुत ज्यादा या बहुत कम होने पर बज उठता है। प्रेग्नेंट लेडीज और बच्चों के लिए ये पंप काफी अच्छे होते हैं। एक की कीमत 2 से 5 लाख रुपये पड़ती है। पेन: सुइयों से राहत के लिए इंसुलिन पेन का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन्हें लगाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, न ही रोज सूई बदलनी पड़ती है। इंसुलिन का एक इंजेक्शन जिसे कई बार उपयोग कर सकते हैं, उसकी कीमत करीब 250-300 रुपये और पेन करीब 400-500 रुपये का पड़ता है। दवाएं भी कुछ नई आई हैंSulfonylurea: पहले की ज्यादातर दवाओं में शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती थी। अगर शरीर में पेनक्रिआस (शरीर के इसी अंग के बीटा सेल्स में इंसुलिन का उत्पादन होता है।) की कार्यक्षमता बढ़ा कर इंसुलिन के उत्पादन में इजाफा करने वाली दवा आती भी थी तो वह महंगी थी। अब इस ग्रुप की दवा लेने से यह शरीर में पहुंचकर यह बीटा सेल्स को ऐक्टिव करता है और इंसुलिन का उत्पादन बढ़ाता है। यह टाइप-2 डायबीटीज मरीजों के लिए कारगर मानी जा रही है। Metformin: यह दवा उन लोगों के लिए कारगर है जिनका शुगर लेवल डाइट और एक्सरसाइज के बाद भी काबू में नहीं आता। इस दवा की मदद से अब शरीर में शुगर के स्तर को कम करने में काफी आसानी होती है। महिलाओं में यह एग के उत्पादन को भी बढ़ाता है। DPP-4 Inhibitors: यह दवा हाई शुगर लेवल को काबू में रखने में काफी मददगार है, खासकर टाइप-2 डायबीटीज को। यह शरीर में इनक्रेटिन (Incretin) हॉर्मोन पर काम करता है। इनक्रेटिन हॉर्मोन तब निकलता है, जब हम कुछ खाते हैं। SGLT2 Inhibitors: इसे इंसुलिन का विकल्प कह सकते हैं। यह उनके लिए कारगर है जो इंसुलिन शुरू नहीं करना चाहते। टाइप-2 डायबीटीज वाले जिन्हें हार्ट की परेशानी की आशंका है, उनके लिए इस ग्रुप की दवा कारगर है। अगर इंसुलिन लेते हैं तो रखें ध्यानn इंसुलिन का इंजेक्शन लगाते हुए ध्यान रखें कि मरीज ने खाना जरूर खाया हो क्योंकि इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। अगर कोई शख्स बिना खाना खाए, यह इंजेक्शन लगा ले तो ब्लड शुगर लेवल लो यानी हापोग्लाइसीमिया हो सकता है। n किसी वजह से मरीज सुबह या शाम को इंजेक्शन लगाना भूल जाए तो मरीज को दो इंजेक्शन एक साथ कभी नहीं लगाने चाहिए। कभी मरीज को लगता है कि आज खाने पर कंट्रोल नहीं हो पाएगा तो वह इंसुलिन की मात्रा बढ़ा सकता है। n इंसुलिन हमेशा नाश्ता करने और डिनर करने से 15-20 मिनट पहले लें। दो इंजेक्शनों के बीच 10-12 घंटों का फासला होना जरूरी है। खाने के एकदम साथ न लगाएं क्योंकि ऐसा करने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। इंसुलिन को 8 से 10 डिग्री तापमान पर यानी फ्रिज में रखना चाहिए। जरूरी सवाल-जवाबशुगर की रेंज को क्यों कम किया गया? यह सवाल कई बार उठाया जाता है कि पहले शुगर की रेंज ज्यादा थी। अब मार्केट को बढ़ाने के लिए इसकी रेंज को कम कर दिया गय है। सच तो यह है कि ऐसा बाजार की जरूरत के हिसाब से नहीं, शरीर की जरूरत के हिसाब से किया गया है। पहले की लिमिट फास्टिंग: 126 पीपी (खाने के 2 घंटे बाद): 180 अब फास्टिंग: 100 पीपी: 140 आखिर इसे क्यों बदला गया?इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि जब किसी का शुगर लेवल फास्टिंग में 120 से 125 तक और पीपी 175 तक पहुंच जाता था तो उस शख्स को शुगर हो ही जाता था। यह प्री-डायबीटीक न होकर इसकी शुरुआत हो जाती थी। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि शुगर के लेवल को कम करके रखने से ही शुगर से बचा जा सकेगा। ग्लाइसेमिक इंडेक्स क्या है?ग्लाइसेमिक इंडेक्स कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों की रैंकिंग है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि भोजन में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज बनने में कितना समय लगता है। ये भी हैं उपायआयुर्वेद DI-E-T ठीक करने से काबू पा सकते हैं: 1. DI (डायट्री इंटरवेंशन): क्या नहीं खाना: -दूध के सभी आइटम बंद: दही, छांछ n ड्राई फ्रूट्स नहीं - मीठा नहीं खाना, गुड़ भी नहीं खाना -स्प्राउट्स, केला, चीकू, बेसन, मेदा, नारियल पानी, सोयाबीन नोट: ऊपर बताए हुए सभी आइटम्स को हफ्ते में एक से दो बार खा सकते हैं। 2. E-एक्सरसाइज -ऐसा कुछ करें कि पूरे शरीर से पसीना निकले। रात में ही नींद पूरी हो इसका ध्यान रखें। हर रात 7 से 8 घंटे की नींद लें। दिन में नहीं सोना। 3. T-ट्रीटमेंट -हल्दी आंवले की चूर्ण हर दिन लें। 1 चम्मच गुनगुना पानी के साथ ले सकते हैं। खाने के आधे घंटा बाद लें। नेचरोपैथीनाश्ते से पहले - सुबह खाली पेट 1 गिलास पेठे के रस में 10 फीसदी बेलपत्र का रस मिलाकर पिएं। -अगर पेठे का रस उपलब्ध न हो तो किसी भी मौसमी कच्ची सब्जी के रस में 10 फीसदी बेलपत्र का रस मिलाकर पिएं। नाश्ते में-एक तरह का फल एक प्लेट खाएं। लंच और डिनर-जब भी लंच तैयार करना हो तो कोशिश यह होनी चाहिए कि रोटी के लिए आटा गूंथते समय उसमें एक-चौथाई मात्रा में मौसमी साग या सब्जी मिला दें। जैसे: पालक या मेथी या धनिया या पुदीना आदि। इससे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम पहुंचेगी। दिन और रात के खाने से पहले एक प्लेट कच्ची सलाद बिना नमक या नीबू के जरूर खाएं। अगर किसी को आ जाए मिर्गी का दौरा...बात सबसे पहले लक्षण की - कोई एक भाग सुन्न पड़ जाता है। -शरीर में थरथराहट हो सकती है, कोई भाग अकड़ जाता है। जुबान लड़खड़ाती है। - मरीज को बेहोशी आ जाती है। -दांत भिंच जाते हैं। किसी को मिर्गी का दौरा पड़े तो क्या करें: - उसे दाएं या बाएं करवट लिटा दें। पेट के बल या पीठ के बल न लिटाएं, नहीं तो गले में थूक अटकने की गुंजाइश बनी रहती है। - आसपास भीड़ जमा न होने दें। - अगर मरीज ने टाइट कपड़ा पहना है तो उसे ढीला कर दें। - मरीज जब तक होश में न आए तो कुछ भी खिलाने या पिलाने की कोशिश न करें। - मरीज को 5 से 7 मिनट तक होश न आए तो डॉक्टर से जरूर दिखाएं। - हाथ या पैर को रगड़ें नहीं। एक्सपर्ट पैनल डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS -डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS - डॉ. अशोक झिंगन, चेयरमैन, डायबीटीज रिसर्च फाउंडेशन -डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी -डॉ. मंजरी त्रिपाठी, हेड, यूनिट-2, न्यूरॉलजी, AIIMS -डॉ. महेश व्यास, डीन, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद -मोहन गुप्ता, वरिष्ठ नेचरोपैथ -डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट -डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन -डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट -डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो
Source navbharattimes

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ