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खेती कानून वापसी से क्या यूपी, पंजाब में नए राजनीतिक गठबंधनों की राह खुलेगी?

नई दिल्ली बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री के कृषि कानूनों के वापस लेने के ऐलान के बाद इसके 'साइड इफेक्ट्स' के रूप में यूपी और पंजाब में नए राजनीतिक गठबंधनों की संभावनाएं देखी जा रही हैं। दरअसल यही वे दो राज्य हैं, जिनमें कृषि कानूनों के सबसे ज्यादा असर की बात कही जा रही थी और यहीं के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए कृषि कानूनों को वापस लेना मोदी सरकार की मजबूरी भी बताई जा रही है। पर्दे के पीछे बहुत सारी बातें शुरू यूपी और पंजाब, दोनों राज्यों में कई राजनीतिक दल ऐसे हैं जो कृषि कानूनों की वजह से बीजेपी के प्रति दिख रही नाराजगी से खुद का नुकसान बचाने को अपने को दूसरे पाले में किए हुए थे। लेकिन अब जब बीजेपी सरकार ने उन कानूनों को ही वापस ले लिया तो उन्हें बीजेपी के साथ आने में उनका धर्मसंकट भी खत्म हो सकता है। हालांकि इस मुद्दे पर अभी औपचारिक तौर पर बातचीत का सिलसिला तो शुरू नहीं हुआ है लेकिन राजनीति तो संभावनाओं का खेल है और पर्दे के पीछे बहुत सारी बातें शुरू भी हो चुकी हैं। आरएलडी बीजेपी साथ आएंगी क्या? कृषि कानून वापसी के बाद सबसे ज्यादा जिस संभावना की चर्चा शुरू हुई है, वह राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के बीजेपी के साथ आने की है। आरएलडी अब तक समाजवादी पार्टी के साथ है लेकिन सीटों के बंटवारे पर पेच फंसा हुआ है। इसी बीच कांग्रेस ने भी आरएलडी के साथ गठबंधन की इच्छा जाहिर की लेकिन वहां भी बात आगे नहीं बढ़ी। आरएलडी का एक वक्त वेस्ट यूपी में बहुत दबदबा माना जाता था लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वेस्ट यूपी का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। जो जाट समाज आरएलडी की ताकत हुआ करता था, वह बीजेपी में शिफ्ट हो गया। नतीजा यह हुआ कि चौधरी अजित सिंह और चौधरी जयंत सिंह 2014 और 2019 का चुनाव हार गए और 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी को महज एक सीट पर ही जीत मिली। इसके बाद बीजेपी को आरएलडी की कोई जरूरत ही नहीं रह गई थी क्योंकि वेस्ट यूपी में उसका खुद का एकाधिकार हो गया। बीजेपी के लिए पहले जैसी स्थिति नहीं कृषि कानूनों से उपजी नाराजगी और किसान नेता राकेश टिकैत के बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल देने के बाद बीजेपी के लिए 2022 के चुनाव में वेस्ट यूपी में पहले जैसी स्थितियां नहीं दिख रही हैं। उसे वेस्ट यूपी में अतिरक्त सहयोग की जरूरत है जो कि आरएलडी से मिल सकता है। वैसे तो वेस्ट यूपी के बीजेपी के जो जाट नेता हैं, वह चौधरी जयंत सिंह के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें इससे अपनी अहमियत कम होने का खतरा सता रहा है लेकिन बीजेपी के नॉन जाट नेता आरएलडी के साथ गठबंधन की हिमायत कर रहे हैं। आरएलडी का तीनों दलों से रहा है रिश्ता आरएलडी पूर्व में एसपी, कांग्रेस और बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ चुकी है लेकिन उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (पांच सांसद और 12 विधायक का) वह बीजेपी के साथ ही रहा है। चौधरी अजित सिंह एनडीए सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। 2014 के चुनाव के लिए बीजेपी आरएलडी से गठबंधन के बजाय उसका विलय चाहती थी, इसी वजह से बात नहीं बन सकी और दोनों दलों की राहें अलग हो गई थीं। यूपी के एक सीनियर बीजेपी नेता ने एनबीटी से कहा कि हमारी पार्टी को जयंत का साथ लेने में कोई एतराज नहीं है। जयंत चौधरी पर निर्भर है कि वह क्या फैसला लेते हैं। इस नेता ने कहा- 'चौधरी जयंत को इतना राजनीतिक तजुर्बा तो हो ही गया होगा कि एसपी और कांग्रेस से कहीं ज्यादा फायदा उन्हें बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने में है।' पंजाब में भी 'खटास' दूर होगी क्या? पंजाब में अकाली दल और बीजेपी के बीच 25 साल दोस्ती रही है। इस गठबंधन ने वहां तीन बार सरकार बनाई। सियासी जुबान में इस गठबंधन को 'विनिंग कॉम्बिनेशन' कहा जाने लगा था लेकिन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में बीजेपी के खिलाफ जैसी नाराजगी दिखी, वैसे 2022 के चुनाव में नुकसान का आकलन करते हुए अकाली दल ने बीजेपी के साथ गठबंधन को खत्म कर लिया था। अकाली दल ने बीजेपी के साथ न रहने की स्थिति में जीत के लिए जरूरी वोटों की जुटान के लिए फिलहाल बीएसपी से गठबंधन किया हुआ है। उधर, बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ चुनाव में जाने की तैयारी में है लेकिन उसे मालूम है कि कैप्टन के साथ कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया जा सकता है लेकिन वैसी बात नहीं बन सकती, जैसी अकाली दल के साथ रहने पर बना करती थी। अकाली दल को बसपा गठबंधन का कितना फायदा? उधर, अकाली दल को बीएसपी के साथ रहने पर कितना फायदा होगा, यह भविष्य का सवाल है लेकिन बीजेपी के साथ रहने पर उसे हिंदू वोट मिलता रहा था और वह एक 'टेस्टेड फॉर्म्युला' था। यानी पंजाब में कांग्रेस के लिए अकाली दल और बीजेपी एक दूसरे की मजबूरी कहे जा सकते हैं। अकाली दल की बीजेपी से जो नाराजगी थी, वह कृषि कानूनों को लेकर, कृषि कानून मुद्दा ही खत्म हो गया। एमएसपी के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री ने कमिटी बनाने का एलान कर दिया। इस तरह अकाली दल के लिए अब कहने को यह तर्क आ गया है कि बीजेपी से हमारी नाराजगी जिन कानूनों को लेकर थी, उन कानूनों को अपने दबाव के जरिए खत्म करा दिया। गठबंधन बनने, बिगड़ने के विकल्प खुले सवाल यह हो रहा है कि अकाली दल का बीएसपी के साथ जो गठबंधन है, उसका क्या होगा तो उसका जवाब यह है कि जब तक चुनाव की अधिसूचना नहीं आ जाती, गठबंधन बनने, बिगड़ने के विकल्प खुले हुए हैं। यूपी में ओमप्रकाश राजभर ने ओवैसी के साथ मिलकर एक मोर्चा बनाया था, जिसमें ओवैसी ने सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी किया था लेकिन ओमप्रकाश राजभर अब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिए हैं। ओवैसी अब दूसरे दलों के साथ गठबंधन का रास्ता तलाश रहे हैं।
Source navbharattimes

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