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जब पश्चिमी यूपी के एक बाहुबली और महबूबा के पिता ने मिलकर मुलायम को CM बना दिया

लखनऊ 1989 के उस साल 22 नवंबर की तारीख थी। लखनऊ के एक मकान में मुलायम सिंह सुबह के वक्त तमाम लोगों से बातचीत करने में जुटे थे। टेबल पर अखबार रखे थे और कमरे के दरवाजे पर खड़े कुछ पत्रकार इस गणित को जोड़ने में जुटे थे कि सत्ता के आज आने वाले परिणामों में राज सिंहासन पर कौन बैठेगा। 22 नवंबर का ये रोज मुलायम की जन्म तारीख भी थी। पार्टी के कुछ नेताओं की बधाई के बीच मुलायम ने सरगर्मी बढ़ा दी थी। मुलायम इस रोज डिप्टी सीएम बन सकते थे। उनकी पार्टी ने उन्हें ये पद देने का दावा भी किया था। लेकिन सत्ता के वोटों की गिनती पूरी होती, इससे पहले ही मुलायम की सियासत ने कुछ खेल खेल दिए और अगले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री के पद को हासिल कर लिया। ये पहला साल था, जब मुलायम यूपी की सत्ता के सबसे बड़े पद पर पहुंचे थे। मुलायम सिंह यादव की इस पटकथा के दो पात्र और थे- एक कल्याण सिंह और दूसरे मुफ्ती मोहम्मद सईद। ये बात दिलचस्प है कि जिन कल्याण सिंह के मुलायम सिंह भविष्य में कट्टरतम विरोधी बने, एक जमाने में वो उन्हीं की मदद से सीएम भी बने थे। दरअसल, 1989-90 के उन दिनों देश में मंडल और कमंडल की राजनीति का दौर चल रहा था। उत्तर प्रदेश अविभाजित था और आज के उत्तराखंड का सारा हिस्सा भी यूपी में ही था। अजीत सिंह थे सीएम पद के उम्मीदवार केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और भारतीय जनता पार्टी इसका एक घटक दल बनकर काम कर रही थी। 1989 के इसी साल यूपी में विधानसभा का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में जनता दल को कुल 208 सीट मिली थी। जनता दल ने अपनी पार्टी की ओर से चौधरी अजीत सिंह को यूपी के सीएम पद का दावेदार घोषित किया था और मुलायम सिंह को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री का पद दिए जाने की बात तय हुई थी। जब चुनाव का परिणाम घोषित हुआ 1989 के विधानसभा चुनाव आने के लिए नवंबर महीने के आखिरी दिन तय हुए थे। इस चुनाव में जनता पार्टी सबसे बड़ी दावेदार थी। जनता दल वो पार्टी थी, जिसका गठन जनमोर्चा, लोकदल (ए) और लोकदल (बी) के गठन से हुआ था। घोषित परिणामों में जनता दल को 208 सीट मिली, वहीं बीजेपी को 57 सीटों का आंकड़ा हासिल हुआ। कुछ वक्त पहले यूपी की सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस इस चुनाव में बुरी तरह से पराजित हुई। अब बारी थी कि जनता दल अपना सीएम बनवाए। सीएम उम्मीदवार के लिए जिन अजीत सिंह का नाम तय था, उन्होंने तैयारी शुरू ही की थी कि मुलायम ने अपना दांव खेल दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि वो डिप्टी सीएम के पद से संतुष्ट नहीं हैं और सीएम बनना चाहते हैं। शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी के बीच लखनऊ से दिल्ली तक हड़कंप मच गया। वहीं जनता दल जिन तीन दलों का संयुक्त रूप थी, उसमें जनमोर्चा गुट के विधायक मुलायम के साथ हो लिए। मामला वीपी सिंह के दरबार पहुंचा लखनऊ की सारी जिच समझे नेता दिल्ली में प्रधानमंत्री वीपी सिंह के पास पहुंचे। मुलायम को मनाने की कोशिशें भी हुईं, लेकिन मुलायम कहां राजी होने वाले थे। तय हुआ कि सीएम कौन होगा ये विधायक तय करेंगे और सारी प्रक्रिया गुप्त मतदान से तय होगी। इसके लिए विधानसभा में तैयारी भी होने लगी। केंद्र ने कुछ नेताओं को मुलायम को मनाने की कोशिश करने को भेजा भी, लेकिन नेपथ्य में यह बात भी थी कि मुलायम के अड़ियल रवैये के सामने सब बेबस थे। डीपी यादव, और बेनी प्रसाद सिंह का रोल उस वक्त की राजनीति को करीब से देखने वाले पत्रकार अरुणयश सिंह कहते हैं, 'मुलायम सिंह जबरदस्त आत्मविश्वास में थे। उनका कहना था कि सीएम तो मैं ही बनूंगा। वीपी सिंह की ओर से आए तीन पर्यवेक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद, मधु दंडवते और चिमन भाई पटेल सभी मुलायम को मनाने पहुंचे थे, लेकिन आखिर में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कह दिया कि मुलायम राजी नहीं हैं। वहीं मुलायम पश्चिम यूपी के अपने बाहुबली सहयोगी डीपी यादव के साथ वेस्ट का इलाका सेट करने में लग गए। अजीत सिंह खेमे के कुल 11 विधायक कैसे मुलायम के साथ आ गए, इसे कोई ना समझ सका। पर्यवेक्षकों पर जिम्मेदारी भी आई, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद समेत तमाम नेताओं ने विधायकों के मुलायम के साथ होने की ही रिपोर्ट केंद्र को दी। मुलायम के करीबी बेनी प्रसाद सिंह विधायकों को पाले में कराने में बड़े मध्यस्थ बन चुके थे। आखिर में इन सब का असर हुआ और मुलायम को बहुमत मिल गया।' अजीत सिंह का सपना और बीजेपी का 'मुलायम युग' मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के 13 दिन बाद उनका शपथ ग्रहण तय हुआ था। इससे पहले विधानसभा के सेंट्रल हॉल में गुप्त मतदान से उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया और अजीत सिंह 5 वोटों के अंतर से पराजित हो गए। 5 दिसंबर 1989 को मुलायम ने यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार शपथ ली। इस सरकार को बीजेपी का भी समर्थन मिला और 57 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी सरकार के साथ हो गई। यही नहीं, कुछ महीनों बाद 1990 में जब बिहार विधानसभा में लालू की पार्टी जनता दल को जब 122 विधायकों के साथ बहुमत की जरूरत पड़ी तो बीजेपी ने 39 विधायकों के साथ उसका भी समर्थन किया।
Source navbharattimes

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