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मिशन पूरा कर खुद को ही खा जाएगा रॉकेट... ISRO अंतरिक्ष में करना वाला है नया करिश्मा!

नई दिल्ली इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी ISRO एक ऐसा नाम जो नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाता है। जो एक साथ 100 से ज्यादा सैटलाइट को छोड़ सकता है। जो स्पेस पर आधारित किसी हॉलिवुड मूवी के बजट से भी कम में चन्द्रयान मिशन को अंजाम दे सकता है। अब ISRO ऐसी तकनीकों पर काम कर रहा है जो हॉलिवुड की साइंस-फिक्शन फिल्मों की कल्पना को भी पीछे छोड़ दे। जो स्टार ट्रेक की काल्पनिक तकनीकों को हकीकत का आकार दे सकता है और कई मायनों में उन्हें भी पीछे छोड़ सकता है। मसलन, खुद को ही खा लेने वाले रॉकेट की तकनीक। आइए जानते हैं भविष्य की उन तकनीकों के बारे में जिन पर इसरो काम कर रही है। इसरो ऐसे फ्यूचर टेक्नॉलजीज पर काम कर रहा है जो अबतक सिर्फ हॉलिवुड की साइंस-फिक्शन फिल्मों में ही दिखती हैं या दिख सकती हैं। जरा सोचिए, एक ऐसा रॉकेट जो मिशन की कामयाबी के साथ खुद को ही खा ले, एक ऐसी सैटलाइट जो खुद ही गायब हो जाए...। ISRO ऐसे ही जबरदस्त तकनीकों पर काम कर रहा है। एक-दो नहीं बल्कि ऐसी 46 फ्यूरिस्टिक टेक्नॉलजीज पर काम चल रहा है। इसरो चीफ के. सिवन ने बताया, 'हम तमाम ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं मसलन रॉकेट खुद को खा जाए जिससे समुद्र में कचरा न गिरे।' ISRO चेयरमैन के. सिवन ने मंगलवार को हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'हमारे सभी रॉकेटों में मेटल केस (धातु से बनी बॉडी) होता है जो लॉन्च के बाद या तो समुद्र में गिर जाता है या फिर फाइनल स्टेज के बाद अंतरिक्ष में रह जाता है, कचरे के तौर पर। हम एक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसमें रॉकेट खुद को ही पूरी तरह खा लेंगे, जिससे न तो समुद्र में कचरा गिरेगा और न ही अंतरिक्ष में मलबा बनेगा। हम रॉकेट की बॉडी बनाने के लिए किसी खास मैटेरियल की तलाश में हैं जो मोटर के साथ खुद को खत्म कर सके।' इसी तरह, एक ऐसी तकनीक पर भी काम किया जा रहा है जिसमें सैटलाइट खुद ही गायब हो जाए। खुद ही पूरी तरह नष्ट हो जाए। यानी जब किसी स्पेसक्राफ्ट की उम्र पूरी हो जाए तो बस एक 'किल बटन' दबाने से उसके नष्ट होने की प्रक्रिया शुरू हो जाए। वह अपने ऑर्बिट में ही पूरी तरह नष्ट हो जाए, खाक हो जाए। यह तो लाइफ साइकिल खत्म होने के बाद सैटलाइट या स्पेसक्राफ्ट के खुद से नष्ट होने या खाक होने की तकनीक हुई। इससे उलट भी एक तकनीक पर इसरो काम कर रहा है जिसमें रॉकेट खुद में आई गड़बड़ियों को खुद ही ठीक कर सके। सिवन ने कहा, 'जब रॉकेट उड़ान भरते हैं तो कभी-कभी उनमें कुछ गड़बड़ियां आ जाती हैं। सेल्फ-हीलिंग मैटेरियल्स से ये खुद ही अपनी गड़बड़ियों को दूर कर सकते हैं।' इन लाजवाब तकनीकों के अलावा इसरो मेक-इन-स्पेस कॉन्सेप्ट्स, क्वॉन्टम कम्यूनिकेशन और अडवांस्ड रेडारों पर काम कर रहा है। दरअसल, इस तरह के तकनीकों पर इसरो का फोकस भारत को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए है।
Source navbharattimes

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