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चंद्रगुप्त मौर्य से जिन्ना तक...UP चुनाव में इतिहास से क्यों निकाले जा रहे किरदार, सियासत समझिए

लखनऊ यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले रोज नए मुद्दे उछाले जा रहे हैं। हालांकि ये मुद्दे आज के नहीं है बल्कि इतिहास के पन्नों से इन्हें कुरेदा जा रहा है। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के बाद यूपी में चंद्रगुप्त मौर्य की एंट्री हो गई है। दरअसल रविवार को बीजेपी के मौर्य कुशवाहा वर्ग सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने नई बहस छेड़ दी। योगी ने कहा कि इतिहास ने चंद्रगुप्त मौर्य को महान नहीं बताया, बल्कि उनसे जो हारा था उस सिकंदर को महान बता दिया। सीएम योगी आदित्यनाथ ने सम्मेलन में पिछड़ों के मान-सम्मान का मुद्दा उठाया, वह भी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के बहाने। दरअसल यूपी में बीजेपी की नजर पिछड़ा वोट बैंक पर है। पटेल बनाम जिन्ना के विवाद में बीजेपी वोटबैंक का डबल फायदा लेने की आस में है। मुसलमानों के खिलाफ पिछड़ों को एकजुट करने की रणनीति पर बीजेपी काम कर रही है। सियासी पंडितों को लगता है कि इस चुनाव में जिसे पिछड़ा वर्ग का साथ मिलेगा, साथ भी उसी के हाथ में होगी। यही वजह है कि गैर यादव पिछड़े वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश कर रही है बीजेपी। योगी का बयान और ओवैसी का पलटवार सीएम योगी ने पिछड़ा वर्ग सम्मेलन ने कहा, 'इतिहास ने चंद्रगुप्त मौर्य को महान नहीं बताया। किसे बताया... जिसे चंद्रगुप्त मौर्य ने हराया था, उस सिकंदर को महान बताया।' योगी के बयान पर पलटवार करते हुए AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने पलटवार किया, 'चंद्रगुप्त और एलेक्जेंडर तो कभी लड़े ही नहीं थे। उनके बीच कोई जंग नहीं थी। किसी का यह कहना ही बताता है कि हमें अच्छे एजुकेशन सिस्टम की जरूरत क्यों है। अच्छे स्कूलों के अभाव में बाबा लोग अपने मन से कुछ भी तथ्य बना देते हैं और परोस देते हैं।' क्या है ओवैसी के बयान की सच्चाई? बात करें योगी के बयान की, तो दरअसल इतिहास कहता है कि चंद्रगुप्त मौर्य, सिकंदर की मौत के बाद शासन में आए। साथ ही उनकी लड़ाई सिकंदर के उत्तराधिकारियों में से एक सेनापति सेल्यूकस के साथ 301-305 ईसापूर्व में हुई थी। इस लड़ाई में मौर्य ने सेल्यूकस को हराया था। यह युद्ध चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के बीच युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि वह साम्राज्य सिकंदर का ही था। यूपी की राजनीति में उछाले जा रहे ऐतिहासिक किरदारयूपी की राजनीति में इन दिनों नेता ऐतिहासिक किरदारों के नाम पर खेल रहे हैं। इससे पहले सपा ने सरदार पटेल की जयंती के दौरान मुहम्मद अली जिन्ना को पटेल का समकक्ष बता दिया था। उनके इस बयान पर खूब बतंगड़ बना और बीजेपी नेताओं ने जमकर निशाना साधा। सीएम योगी आदित्यनाथ को अपने हर संबोधन में पटेल और जिन्ना का जिक्र करते हुए अखिलेश पर हमला बोल रहे हैं। यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी और राजनीति जातीय आधार पर वोट बैंक का कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है लेकिन राजनैतिक दलों के पास मौजूद आंकड़ों पर गौर करें तो संख्या के लिहाज से यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का है। राजनैतिक दलों के आंकड़ों की माने तो लगभग 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव बिरादरी का है। लेकिन, यूपी के चुनाव परिणामों पर नजर डाले तो खुलासा होता है कि पिछड़ा वर्ग के वोटर समूह के तौर पर वोटिंग नहीं करता। चुनाव में उनका वोट जाति के आधार पर पड़ता है। यही कारण है कि छोटे हो या फिर बड़े दल, सभी की निगाहें इस वोट बैंक पर रहती है। यादव और गैर यादव वोट बैंक की कितनी संख्या? यूपी में यादव वोट बैंक नौ फीसदी माना जाता है। इस वोटबैंक पर समाजवादी पार्टी का एकाधिकार माना जाता है। गैर यादव ओबीसी वोटबैंक की बात करें, तो दूसरे नंबर पर पटेल और कुर्मी वोट बैंक आता है। यूपी की जातीय अंकगणित में सात फीसदी वोटबैंक इसी जाति का है। जातिगत आधार पर देखें तो यूपी के सोलह जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है। इनमें मीरजापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं। यादव और कुर्मी के अलावा ओबीसी वोटबैंक में करीब डेढ़ सौ और जातियां हैं, जिन्हें अति पिछड़ों की श्रेणी में रखा जाता है। कुशवाहा और लोध समुदाय की आबादी कितनी? इसमें ओबीसी की कुशवाहा जाति का तेरह जिलों का वोटबैंक सात से 10 फीसदी है। इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं। ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है। यूपी के 23 जिलों में लोध वोटबैंक का दबदबा है। इनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है।
Source navbharattimes

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