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घर जाना चाहते हैं 32 संगठनों के किसान लेकिन अड़े हैं कुछ नेता, कैप्टन अमरिंदर भी चल रहे चाल!

नई दिल्ली भले ही संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने बयान जारी कर कहा हो कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर भरोसा नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा होते ही ज्यादातर किसान संगठनों ने 19 नवंबर को ही घर वापसी का मन बना लिया था। चूंकि ये 32 किसान संगठन भी सालभर से संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले ही आंदोलन करते रहे हैं, इसलिए अचानक मोर्चे को दरकिनार तो नहीं कर सकते। यही वजह है कि आखिरी फैसले के लिए 1 दिसंबर की तारीख तय की गई। दो फाड़ हुआ आंदोलन आज के महामंथन में पृष्ठभूमि में काम करने वाले 32 किसान संगठनों के अगुवा और राकेश टिकैत, गुरुनाम सिंह चढूनी, दर्शन पाल जैसे अग्रिम पंक्ति के नेताओं के बीच तर्क-वितर्क होंगे। दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलें देगा और कोशिश होगी कि सबकी सहमति से ही कोई फैसला हो। हालांकि, 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद से दोनों पक्षों के जो रवैये सामने आ रहे हैं, उससे सर्वसम्मति बन पाना बहुत कठिन है। ऐसे में किसान आंदोलन में 19 नवंबर को पड़ी दरार पूरी तरह खाई में बदल जाएगी। घर लौटने को तैयार है किसानों का बड़ा वर्ग दरअसल, जो किसान सिर्फ कृषि कानूनों की वापसी को लक्ष्य बनाकर आंदोलन में शामिल हुए और तमाम झंझावातों को झेलकर दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहे, उनके लिए आंदोलन जारी रखने का कोई मकसद बच नहीं गया है। वो अपने लक्ष्य में कामयाब रहे हैं, इसलिए उनके लिए आगे भी धरना-प्रदर्शन की कष्टप्रद जिंदगी जीने और खेती-बाड़ी तथा परिवार से दूर रहने के पीछे कोई वजह नहीं रह गई है। उनके अंदर यह सवाल भी उठ रहा है कि आंदोलन का मकसद पूरा हो गया तो टिकैत, चढूनी, पाल जैसे नेता आखिर सरकार के साथ संघर्ष जारी रखना क्यों चाहते हैं? कुछ महीनों में ही पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आंदोलनकार किसानों का एक बड़ा वर्ग संभवतः इन नेताओं की मंशा पर भी शक करने लगा है। अति सक्रिय हैं किसानों के बीच इस उहापोह को समझकर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। यूं तो उन्होंने प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद से ही आंदोलनकारी किसानों को अपना संदेश भेजने लगे। हालांकि, जब उन्हें किसानों के बीच से यह कहा गया कि वो घर वापसी को तैयार हैं, लेकिन इसका सर्वसम्मति से फैसला होने का इंतजार कर रहे हैं, तब कैप्टन ने सक्रियता बढ़ा दी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की। स्वाभाविक है कि उन्होंने खट्टर से कहा होगा कि किसानों का बड़ा वर्ग घर लौटने पर राजी हैं, कुछ नेता उन्हें कुछ अन्य मांगों के बहाने रोकने की जुगत में हैं। कहा जा रहा है कि कैप्टन ने खट्टर से कहा है कि पंजाब सरकार आंदोलन के दौरान दम तोड़ने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा कर चुकी है तो हरियाणा सरकार को भी किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर मामले हरियाणा में ही दर्ज किए गए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा पर बढ़ता दबाव कैप्टन अमरिंदर सिंह यही संदेश किसानों के बीच भेज रहे हैं कि मुआवजे और मुकदमे की वापसी की मांगें भी पूरी हो रही हैं। साथ ही, केंद्र सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कमिटी गठित करने का ऐलान ही नहीं किया बल्कि संयुक्त किसान मोर्चे से पांच प्रतिनिधियों के नाम भी मांग लिए हैं तो इस मांग पर भी अब अड़ने की कोई वाजिब वजह नहीं दिखती है। कहा जा रहा है कि कैप्टन के इस संदेश पर किसानों ने घर वापसी के लिए अपना बोरिया-बिस्तरा भी समेट लिया। 32 संगठनों ने सोमवार को मीटिंग की और उसमें भी घर वापसी का फैसला हुआ, लेकिन इसके लिए सर्वसम्मति बनाने को तरजीह दी गई। तब कैप्टन अमरिंदर ने उनसे कहा कि वो घर जाएंगे तो बाकी बचे संगठन और नेता दबाव में आ जाएंगे और आंदोलन यूं ही खत्म हो जाएगा। आंदोलन कमजोर तो हो ही जाएगा! इस लिहाज से आज की मीटिंग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है कि क्या आंदोलन इसी एकजुटता से आगे बढ़ेगा या फिर कुछ संगठन घर लौट जाएंगे। संभव है कि आज की मीटिंग के बाद वो सभी 32 किसान संगठन दिल्ली बॉर्डर खाली कर दें जो 19 नवंबर से ही बोरिया-बिस्तरा समेटकर तैयार हैं। संभव यह भी है कि उन 32 संगठनों के अंदर ही फूट पड़ जाए और उनमें से कुछ संगठन ही घर लौटें जबकि कुछ एसकेएम के इशारे का इंतजार करते रहें। यह भी संभव है कि इन 32 संगठनों को कुछ और किसान संगठनों का समर्थन मिल जाए। ये सारी संभावनाएं तो हैं, लेकिन इस बात की सबसे बड़ी संभावना है कि आगे किसान आंदोलन की वो धार नहीं रह जाएगी जो एक साल से महसूस की जा रही थी।
Source navbharattimes

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