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'प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़कर देश की छवि धूमिल कर दी, 'आध्यात्मिक गणतंत्र भारत' होना चाहिए था नाम'

नई दिल्ली भारत अनंत काल से एक आध्यात्मिक देश रहा है और संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ने से देश की यह छवि को नुकसान पहुंचा है। यह कहना है जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल का। उन्होंने कहा कि संविधान में अपने देश को 'आध्यात्मिक लोकतंत्र भारत' कहा जाना चाहिए था। सम्मेलन में बोले चीफ जस्टिस मित्तल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने रविवार को 'धर्म और भारत का संविधान' विषय पर एक सम्मेलन में प्रमुख भाषण देते हुए कहा कि भारत के मूल संविधान में ही 'संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र' का उल्लेख कर दिया गया था। ऐसे में 1976 के संशोधन में प्रस्तावना को बदलकर इसकी आध्यात्मिक छवि को चोट पहुंचाई गई। कभी किसी एक धर्म से नहीं पहचाना गया भारत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अधिवक्ता परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम में जस्टिस मित्तल ने कहा कि भारत अपने सभी नागरिकों की देखभाल करने में सक्षम है और इसमें समाजवादी प्रवृत्ति अंतर्निहित है। उन्होंने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्यों, गुप्तों, मुगलों और अंग्रेजों तक शासन किया लेकिन भारत को कभी मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में नहीं देखा गया क्योंकि इसकी आध्यात्मिक देश की छवि सर्वमान्य थी। भारत के नए संवैधानिक नाम का प्रस्ताव उन्होंने कहा, 'पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़कर हमने खुद की आध्यात्मिक आभामंडल के विस्तार को संकुचित कर दिया।' उन्होंने कहा, 'इसे संकुचित दिमाग की सोच कहा जा सकता है।' वरना, भारत तो युगों-युगों से आधात्यामिक देश रहा है और इसका नाम 'आध्यात्मिक लोकतंत्र भारत' होना चाहिए था। ध्यान रहे कि 1976 में संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनरिपेक्ष शब्द जोड़े गए थे। तब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी।
Source navbharattimes

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