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कोरोना के ओमीक्रोन वेरिएंट का कैसे लगाया जा रहा है पता, क्या है इसके टेस्ट का तरीका

नई दिल्ली पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन (Omicron Testing kit) पर बहस छिड़ी हुई है। मेडिकल साइंस के सामने ओमीक्रोन एक नई चुनौती बन गया है। कोरोना वायरस जब आया तो पूरी दुनिया इससे अनजान थी। नतीजा ये हुआ कि जब तक इसको समझा गया तब तक लाखों लोगों की मौत हो चुकी थी। अब पूरे विश्व के मेडिकल साइंस के सामने कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन () के कई अनसुलझे सवाल हैं। जिसका जवाब तलाशने के लिए वैज्ञानिक दिन-रात लगे हुए हैं। उनमे से एक सवाल बेहद महत्वपूर्ण है वो ये है कि क्या RTPCR टेस्ट से इस वायरस का पता चल पाता है या नहीं? टेस्ट को लेकर WHO ने क्या कहासबसे पहले हम ये बताते हैं कि विश्व स्वासथ्य संगठन यानी WHO का इस मामले में क्या कहना है। वायरस की जांच को लेकर WHO ने कहा है कि मौजूदा वक्त में SARS-CoV-2 PCR इस वेरिएंट को पकड़ने में सक्षम है। पीसीआर टेस्ट ओमिक्रोन के साथ संक्रमण का पता लगा सकते हैं। हालांकि यह निर्धारित करने के लिए अध्ययन जारी है कि क्या रैपिड एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट सहित अन्य प्रकार के परीक्षणों पर कोई प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यूएचओ ने ये भी कहा कि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि क्या ओमिक्रोन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अधिक तेजी से फैलता है या नहीं। नए संस्करण के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन में निष्कर्ष पर पहुंचने में कई सप्ताह लगेंगे। क्या RT-PCR से पता चला पाएगा?लेकिन, कहानी यहीं पर खत्म नहीं होती है। ये बात सच है कि जांच के लिए अभी सबसे बड़ा हथियार आरटीपीसीआर (Omicron RT PCR Test) ही है मगर ये कितना कारगर है इसके लिए मेडिकल साइंस का अलग मत है। इस वायरस से बचने के लिए सबसे जरुरी है ट्रेकिंग और ट्रेसिंग और टेस्टिंग। जितनी जल्दी हम संक्रमित लोगों को पता लगाएंगे उतनी ही तेजी से हम इसको काबू में कर सकते हैं। लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि यह सीधा आसान दिख रहा है उतना ये है नहीं। भारत में अधिकांश आरटी-पीसीआर टेस्ट ओमाइक्रोन और अन्य वेरिएंट्स के बीच अंतर पता करने में सक्षम नहीं हो सकते। क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक?वैज्ञानिकों के मुताबिक आरटी-पीसीआर टेस्ट (RT-PCR Test) से ही इस बात की पुष्टि हो सकती है कि व्यक्ति को संक्रमण है या नहीं। लेकिन ये टेस्ट यह पता नहीं लगा सकता कि रोगी को कोरोना वायरस का कौन सा वेरिएंट है। इसका पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग स्टडी () करनी होगी। लेकिन यहां पर भी एक पेंच है। सभी संक्रमित नमूनों को जीनोम अनुक्रमण के लिए नहीं भेजा जाता है, क्योंकि यह एक धीमी, जटिल और महंगी प्रक्रिया है। आम तौर पर सभी सकारात्मक नमूनों का केवल एक बहुत छोटा सा हिस्सा लगभग 2 से 5 प्रतिशत ही जीनोम के लिए भेजा जाता है। कैसे काम करता है आरटीपीसीआर टेस्ट?कई आरटी-पीसीआर परीक्षण कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन में एक पहचानकर्ता की तलाश करते हैं जोकि शरीर के अंदर एक फैला हुआ क्षेत्र है। यही वायरस को शरीर में प्रवेश करने की अनुमति देता है। यदि स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन होते हैं, जैसा कि ओमाइक्रोन संस्करण के मामले में है तो इस बात की संभावना है कि इस क्षेत्र में पहचानकर्ताओं की तलाश करने वाले ऐसे आरटी-पीसीआर परीक्षण उसके म्यूटेशन के कारण वो जांच में नहीं पकड़ा जाए। ऐसे में वो परीक्षण निगेटिव रिपोर्ट ही सौंपेगा। जरुरी नहीं आरटीपीसीआर सटीक बताएइसको लेकर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के डायरेक्टर डॉ. अनुराग अग्रवाल का कहना है कि ऐसा जरूरी नहीं है कि आरटी पीसीआर टेस्ट से हर व्यक्ति की सटीक रिपोर्ट ही आये। इसमें किसी भी कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति की रिपोर्ट नेगेटिव भी आ सकती है। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार होते हैं। जब कोरोना के डबल म्यूटेंट को पीसीआर पॉजिटिव के साथ सीक्वेंस किया जाता है तब इसके म्यूटेंट टेस्ट से बच नहीं सकते। भारत में नहीं है वो विशेष किटउन्होंने कहा कि कोरोना के नए वैरिएंट की आरटी पीसीआर जांच के जरिए पता लगाना संभव तो है लेकिन हमारे देश में आईसीएमआर के द्वारा अप्रूव आरटी पीसीआर टेस्टिंग किट का इस्तेमाल किया जाता है और इनमें से अधिकांश किट ई, आरडी आरपी और एन जीन के बारे में पता लगाने के लिए सक्षम होती हैं। चूंकि कोरोना का नए वैरिएंट ओमिक्रोन का बदलाव एस जीन में हुआ है जिसकी वजह से सामान्य आरटी पीसीआर किट के द्वारा इसके सटीक परिणाम नहीं भी मिल सकते हैं। भारत के साथ बड़ी समस्याडब्ल्यूएचओ ने कहा कि थर्मो फिशर साइंटिफिक ने जो आरटीपीसीआर किट विकसित की हैं वो ओमाइक्रोन वेरिएंट का पता लगा सकती हैं। भारत में उपयोग की जा रही कुछ किट संभावित रूप से वैरिएंट का भी पता लगा सकती हैं। जैसा कि IGIB के एक वैज्ञानिक विनोद स्कारिया ने कहा था कि किट की क्षमता का पता लगाने के लिए प्राइमर (रसायन जो पहचानकर्ताओं को उठाएंगे) पर निर्भर करता है। मगर दुर्भाग्य से भारत में उपयोग की जाने वाली अधिकांश किटों के लिए प्राइमर विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि इस्तेमाल की जा रही एक विशेष किट इस संस्करण का पता लगाने में सक्षम होगी या नहीं।
Source navbharattimes

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