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'आतंक का द्वार' बता तबलीगियों पर फंदा तो कस दिया, अब टेरर फंडिंग से भी बाज आएगा सऊदी अरब?

नई दिल्ली तबलीगी जमात एक बार फिर चर्चा में है। पहले तब चर्चा में था जब 2020 में कोरोना महामारी ने भारत में दस्तक दी थी। तब आरोप लगे थे कि तबलीगी जमात के सदस्यों ने जाने-अनजाने में देश के अलग-अलग हिस्सों में संक्रमण पहुंचाया। अब फिर चर्चा में है और इस बार भी नकारात्मक वजहों से। कट्टर सुन्नी इस्लाम का रहनुमा होने का दम भरने वाले सऊदी अरब ने सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन कहे जाने वाले तबलीगी जमात पर बैन लगा दिया है। सऊदी ने तबलीगी जमात को आतंकवाद का एंट्री गेट तक बताया है। इतना ही नहीं, मस्जिदों से जुमे की नमाज के बाद लोगों को तबलीगी जमात से न जुड़ने और इस समूह से पैदा होने वाले खतरों को भी बताने का ऐलान किया है। टेरर फंडिंग का रिढ़ रहे सऊदी अरब को आखिर तबलीगी जमात खतरा क्यों दिखने लगा? यह अचानक हृदय परिवर्तन है या फिर तबलीगी जमात सचमुच इतना बड़ा खतरा है कि 'टेरर फंडिंग का बादशाह' तक उससे डर गया? आखिर सऊदी का तबलीगी जमात पर बैन लगाना क्यों कोई मामूली घटना नहीं है, आइए समझते हैं। क्यों अहम है सऊदी अरब का बैन लगाना? सोचिए अगर तबलीगी जमात पर सऊदी नहीं, किसी अन्य देश ने बैन का ऐलान किया होता? अगर अमेरिका ने ऐसा किया होता? अगर भारत ने यह किया होता? अगर ऐसा होता तो कथित इस्लामोफोबिया को लेकर हो हल्ला मच जाता। लेकिन यह बैन उस देश ने लगाया है जो खुद को इस्लाम खासकर सुन्नी इस्लाम का चैंपियन बताता आया है, इसलिए सन्नाटा सा है। सऊदी अरब का बैन लगाना इसलिए भी अहम है कि उस पर ही दुनिया में जेहादी आतंकवाद को बढ़ावा देने, टेरर फंडिंग के आरोप लगते रहे हैं। आतंक पर सऊदी अरब का खुद का दागदार दामन सऊदी अरब पर इस्लाम के प्रचार-प्रसार के नाम पर टेरर फंडिंग के आरोप लगते रहे हैं। 90 के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के उत्तरार्ध तक सऊदी अरब ने चैरिटी के नाम पर आतंक को हवा दी। वियॉन न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौरान सऊदी अरब बेस्ड मुस्लिम वर्ल्ड लीग नाम का चैरिटी संगठन दुनियाभर में आतंकी संगठनों को समर्थन देता रहा। बाद में तमाम डॉक्युमेंट्स से यह खुलासा हुआ कि इस चैरिटी को सऊदी के शाही परिवार के सदस्य ही चला रहे थे। बाद में अमेरिका ने इस चैरिटी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया। अलकायदा के लिए टेरर फंडिंग का 'केंद्र' रहा है सऊदी 2003 में अमेरिका के एक सीनियर ट्रेजरी अफसर ने सऊदी अरब को अल कायदा के टेरर फंडिंग का 'केंद्र' बताया था। संयुक्त राष्ट्र में सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक कुख्यात आतंकी संगठन अलकायदा को 1992 से 2002 के बीच 10 वर्षों के दौरान 30 से 50 करोड़ डॉलर की फंडिंग मिली थी। सऊदी अरब पर तो यहां तक आरोप लगते रहे हैं कि उसके उच्चायोग भी आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं। 2008 में अल कायदा के अली अहमद अली हमद नाम के एक आतंकी ने सनसनीखेज खुलासा किया था कि बोस्निया में सऊदी हाई कमिशन ने ही उसे और बाकी अल कायदा सदस्यों की भर्ती कराई थी! सऊदी अरब ने सिर्फ अलकायदा नहीं बल्कि तालिबान का भी समर्थन किया है। 1998 में सऊदी के पूर्व खुफिया प्रमुख तुरकी अल फैसल ने तालिबान के एक शीर्ष अधिकारी को एक शख्स के जरिए 1 अरब रियाल यानी आज के हिसाब से 20 अरब रुपये से ज्यादा का चेक भेजा था। सऊदी अरब के चैरिटी संगठन 4 दशकों से आतंकी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाते रहे हैं। एक ताकतवर मुस्लिम देश और समृद्धशाली होने की स्थिति का सऊदी दुरुपयोग करता आया है और उसने कई आतंकियों को अपने यहां पनाह दी। 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने सऊदी दौरे के दौरान जोर देकर इस मुद्दे को उठाया था। 'टेरर फंडिंग के केंद्र' सऊदी अरब का अचानक हृदय परिवर्तन? दुनियाभर में आतंकी संगठनों को वित्तीय मदद पहुंचाने के लिए कुख्यात सऊदी अरब का तबलीगी जमात पर 'आतंक का द्वार' कहते हुए बैन लगाना अपने आप में बहुत अहम है। अचानक सऊदी अरब का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के लिए मुखर होती आवाज भी एक वजह है। सऊदी अरब को धीरे-धीरे अहसास हो रहा है कि दुनिया में दहशत फैलाकर इस्लाम का भला नहीं हो सकता। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के दौर में यह बदलाव साफ दिखने भी लगा है। सलमान धीरे-धीरे सऊदी अरब की कट्टर इस्लामी छवि को उदार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अब वहां महिलाओं को ड्राइविंग करते देखा जा सकता है। 2015 में पहली बार सऊदी महिलाओं ने म्यूनिसिपल इलेक्शन में वोट भी डाला। सिनेमा हॉल खुल रहे हैं। म्यूजिक कंसर्ट हो रहे हैं। ये वो चीजें हैं जिसकी कुछ साल पहले तक सऊदी अरब में कल्पना तक नहीं की जा सकती थीं। क्राउन प्रिंस सलमान के इन सुधारों को देखते हुए इस पर यकीन किया जा सकता है कि आतंकवाद पर धीरे-धीरे सऊदी का हृदय परिवर्तन हो रहा है। कह सकते हैं कि तबलीगी जमात पर उसका बैन किसी मजबूरी में उठाया गया नपा-तुला कदम नहीं बल्कि आतंकवाद के खतरे को लेकर उसकी गंभीरता को दिखाता है। भारत में जन्मा तबलीगी जमात, दुनियाभर में फैला तबलीगी जमात (शाब्दिक अर्थ- आस्था को फैलाने वाला समाज) पर सऊदी अरब का बैन इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इस संगठन का जन्म भारत में ही हुआ। 1926 में देवबंदी मौलाना मुहम्मद इलियास ने तबलीगी जमात की नींव रखी थी। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन में है। यह एक तरह का सुन्नी इस्लामिक मिशनरी मूवमेंट है जिसका मकसद मुस्लिमों को सुन्नी इस्लाम के शुद्ध रूप की तरफ लौटाना है। बाद में तबलीगी जमात भारत से बाहर दक्षिण एशिया और दुनिया के तमाम देशों में फैला। एक अनुमान के मुताबिक तबलीगी जमात के दुनियाभर में 35 से 40 करोड़ सदस्य हैं। यह खुद को आध्यात्मिक और धार्मिक संगठन कहता है जो राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह दूर है। तबलीगी जमात का 'टेरर कनेक्शन' तबलीगी जमात का पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से रिश्ते का लंबा इतिहास रहा है। में पिछले साल छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण में शामिल आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन के मूल संस्थापक तबलीगी जमात के ही सदस्य थे। कई पाकिस्तानी सुरक्षा विश्लेषकों और भारतीय जांचकर्ताओं का यह निष्कर्ष है। 1985 में वजूद में आए हरकत-उल-मुजाहिदीन ने अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत रूस के खिलाफ पाकिस्तान समर्थित जिहाद में हिस्सा लिया था। इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकी कैंपों में तब 6 हजार से ज्यादा तबलीगी सदस्यों ने ट्रेनिंग ली थी। अफगानिस्तान से रूस की वापसी के बाद ये आतंकी संगठन कश्मीर में सक्रिय हो गए। बाद में हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकी जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हो गए जिसका सरगना मसूद अजहर है। विकीलिक्स के डॉक्युमेंट्स के मुताबिक 9/11 आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने ग्वांतानामो बे में जिन संदिग्धों को पकड़ा था उनमें से कुछ दिल्ली में तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मर्कज में कई सालों तक ठहरे थे।
Source navbharattimes

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