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'सरोगेट मां सिर्फ कैरियर, बच्‍चे की बायोलॉजिकल पैरंट नहीं', दिल्‍ली कोर्ट ने कपल को दी बड़ी राहत

साकेत कोर्ट एक कपल को सरोगेसी के जरिए जन्मे उनके एक बच्चे का बायोलॉजिकल पैरंट्स घोषित करते हुए अदालत ने कहा कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो पक्षकारों को जेस्टेशनल एग्रीमेंट करने से रोकता हो। सिविल जज चित्रांशी अरोड़ा ने सरोगेसी से जुड़े कानून का आकलन किया। अदालत ने पाया कि देश में सरोगेसी को गवर्न करने के लिए कोई कानून नहीं है। हालांकि, यहां पर सरोगेसी आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के जरिए रेगुलेट हो रही है। कोर्ट के सामने केस क्‍या था?अदालत ने कहा कि एक शादीशुदा जोड़े द्वारा इस तरह जन्म दिए गए बच्चे का वैधानिक पैरंट्स ही माना जाएगा। उनके पास बच्चे का माता-पिता कहलाए जाने, उसे बड़ा करने और उत्तराधिकार से जुड़े सारे अधिकार होंगे। अदालत एक ऐसे कपल के केस को डील कर रही थी, जिन्होंने यह घोषित किए जाने की मांग की कि नवजात बच्ची के कानूनन माता पिता ये दोनों हैं और प्रतिवादियों का उस पर पैरेंटल अधिकार जताने का कोई अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने माता-पिता बनने के लिए जेस्टेशनल सरोगेसी का विकल्प चुना था। इसके लिए उन्होंने प्रतिवादी जोड़े के साथ जेस्टेशनल एग्रीमेंट किया था, जिसके तहत प्रतिवादी महिला ने अपने पति की सहमति से सरोगेट मां बनने की सहमति दी। एग्रीमेंट के मुताबिक वह सिर्फ जेस्टेशनल कैरियर होगी, बच्चे की बायोलॉजिकल पैरंट नहीं। भविष्‍य मे दावे से बचने के लिए ठोका दावामहिला ने आईवीएफ के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया। याचिकाकर्ताओं को डर था कि वह भविष्य में इस बच्ची को लेकर दावा ठोक सकती है। इसलिए यह केस दायर किया गया। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने माना कि याची कपल को सीपीसी के नियमों के मुताबिक बच्ची के कानूनी माता-पिता कहलाए जाने का पूरा अधिकार है। कपल को बच्ची का वैध और बायोलॉजिकल पैरंट्स घोषित करते हुए अदालत ने प्रतिवादी को आदेश दिया कि वे जेस्टेशनल सरोगेसी एग्रीमेंट की शर्तों का पालन करें और उसके खिलाफ न जाएं।
Source navbharattimes

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