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स्कूल-कॉलेज में हिजाब ठीक है? यह इस्‍लाम का अभिन्‍न अंग या नहीं, अदालत के सामने है सवाल

नई दिल्‍ली : कर्नाटक के सरकारी कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर आने से मना किए जाने का विवाद कर्नाटक हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के सामने है। सुप्रीम कोर्ट में भी एक अर्जी दाखिल हुई। इसमें मामले को ट्रांसफर कर 9 जजों की बेंच के सामने सुनवाई की अपील की गई थी। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में पहले हाईकोर्ट को फैसला करने दें। अदालत ने यह भी कहा कि समय आने पर वह इस मामले में सुनवाई करेगी और हर नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी। हाईकोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हिजाब पहनना अनुच्छेद-25 (1) (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत मौलिक अधिकार है? क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है? संविधान के जानकारों का कहना है कि किसी भी मजहब से जुड़ा लिबास या अपनी पसंद के कपड़े पहनना संवैधानिक अधिकार है। लेकिन बहस का मुद्दा यह है कि क्या सरकार और कोई संस्थान ड्रेस कोड लागू कर हिजाब या किसी धार्मिक पहचान वाले ड्रेस पर पाबंदी लगा सकते हैं? निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला ने 24 अगस्त 2017 को निजता के अधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया था। निजता को लाइफ एंड लिबर्टी यानी अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार माना गया है। जीवन के अधिकार में गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार संविधान बनने के बाद नहीं बना है बल्कि इन्हें संविधान ने नैसर्गिक अधिकार माना। निजता के मूल में व्यक्तिगत घनिष्ठता, पारिवारिक जीवन, शादी, प्रजनन, घर, सेक्शुअल ओरिएंटेशन सबकुछ है। जीवन और व्यक्तिगत आजादी (लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी) अलग न किए जाने वाले मौलिक अधिकार हैं। मर्जी के कपड़े पहनने का अधिकार मगर...केशवानंदन भारती केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार संविधान का अभिन्न हिस्सा है। एक आदमी स्वाभाविक तौर पर जो कुछ भी करता है, वह स्वतंत्रता का ही पार्ट है। स्वतंत्रता संविधान की आत्मा है। यहां सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट संजय पारिख कहते हैं कि लाइफ एंड लिबर्टी का जो मौलिक अधिकार है, वह व्यापक और अहम है। इसमें गरिमा के साथ स्वच्छंद तरीके से जीवन जीने का अधिकार शामिल है। देश में हर नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपनी मर्जी का खाए, अपनी मर्जी की पोशाक पहने, अपनी मर्जी का जीवन साथी चुने... अनुच्छेद-19 (1) और अनुच्छेद-21 के तहत हर व्यक्ति को अपनी मर्जी की ड्रेस पहनने का अधिकार मिला हुआ है। कोई सरकार ड्रेस कोड नहीं तय कर सकती। ना ही यह पाबंदी लगा सकती है कि किसी इलाके में महिलाएं हिजाब नहीं पहन सकतीं या घूंघट नहीं कर सकतीं। लेकिन किसी शैक्षणिक संस्थान या ऑफिस के लिए ड्रेस कोड तय किया जा सकता है। इस मामले में ड्रेस कोड अनुशासन का विषय है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि संविधान की प्रस्तावना में जो धर्मनिरपेक्ष शब्द है, वह व्यापक तौर पर सर्व धर्म सम भाव की बात करता है। यानी धार्मिक आस्था की राह में सरकार नहीं आएगी। अनुच्छेद-25 (1) में धार्मिक स्वतंत्रता की बात है। इसके तहत हर नागरिक को अपने धर्म के प्रति आस्था रखने, प्रैक्टिस करने और उसके प्रचार-प्रसार का अधिकार मिला हुआ है। हालांकि सरकार इसे रेग्युलेट कर सकती है। पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता की कसौटी पर इस पर रोक लगा सकती है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत भी हर धर्म के लोगों को अपने हिसाब से पोशाक पहनने की छूट है। अदालत को क्‍या तय करना है?अहम सवाल है कि क्या इस अधिकार को किसी संस्थान या ऑफिस में ड्रेस कोड लागू कर प्रतिबंधित किया जा सकता है? यहां यह समझना होगा कि जो भी धार्मिक प्रैक्टिस या पोशाक, धर्म का अभिन्न अंग है उस पर किसी भी हाल में रोक नहीं लगाई जा सकती। जैसे- सिखों की पगड़ी उनके धर्म का अभिन्न अंग है। इसलिए उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। क्या उसी तरह से इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है? अदालत के सामने यही सवाल है। वैसे, पहले केरल हाई कोर्ट के सामने भी हिजाब का मुद्दा उठ चुका है। उसने 2015 और 2016 में याचिकाकर्ता स्टूडेंट्स को इस बात की इजाजत दी थी कि वे एग्जाम के समय हिजाब पहन सकती हैं। केरल हाईकोर्ट ने 2016 में कुरान और हदीस का परीक्षण किया और देखा कि क्या हिजाब और पूरे बांह वाली ड्रेस मुस्लिम धर्म और आस्था के तहत जरूरी है? हाईकोर्ट ने पाया कि सिर ढकना और लंबी आस्तीन वाले कपड़े पहनना इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है।
Source navbharattimes

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