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अगर प्रदर्शन सही तरीके से हों, हिंसक ना हों, तो उनमें कोई बुराई नहीं हैः JNU के पूर्व वीसी प्रो. एम जगदीश कुमार

हाल ही में (यूजीसी) को अपना नया चेयरमैन मिला है। (जेएनयू) में छह साल तक वाइस चांसलर की जिम्मेदारी संभालने के बाद को अब यूजीसी चेयरमैन बनाया गया है। जेएनयू वीसी का उनका कार्यकाल विवादों और विरोध प्रदर्शनों से भरा रहा। यूजीसी चेयरमैन के रूप में देशभर की यूनिवर्सिटियों के लिए उनके क्या प्लान हैं, इस पर प्रो. जगदीश कुमार से कात्यायनी उप्रेती ने बातचीत की, प्रस्तुत हैं मुख्य अंश : अब सबसे पहले आप क्या करने जा रहे हैं? पहले तो मुझे (NEP) लागू करानी है। NEP 2020 में कोविड के बीच लॉन्च हुई। हालांकि, इससे हमें इसे समझने का वक्त मिला और सभी को जागरूक किया जा सका। अब हम इस स्थिति में आ गए हैं कि NEP को सभी हायर एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में लागू कर सकें। इसमें कई प्रावधान ऐसे हैं, जिनको लेकर यूजीसी को रेग्युलेशंस बनाने की जरूरत है ताकि यूनिवर्सिटी/कॉलेज लागू कर पाएं। इस पर हम तेजी से काम पूरा करेंगे। हमारी प्राथमिकता है कि सभी यूनिवर्सिटियों को मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन के नए कोर्स शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करें। कॉलेजों की अटॉनमी का भी पेच फंसा है। चीजें ऑनलाइन की तरफ जा रही हैं। इन्हें लेकर क्या करने जा रहे हैं? कई कॉलेजों को हम अटॉनमी देंगे ताकि वे डिग्री देने वाले कॉलेज बन जाएं। इसके लिए इन्हें नैशनल असेसमेंट एंड अक्रेडटैशन काउंसिल से एक तय ग्रेडिंग हासिल करनी होगी। यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, दो साल में हमारे पास ऐसे कई कॉलेज होंगे। इसके अलावा, ऑनलाइन डिग्री देने के लिए भी हम इंस्टिट्यूट को तैयार करेंगे। हम ऑनलाइन एजुकेशन रेग्युलेशंस को सरल बनाने की प्रक्रिया में हैं। इस पर कमिटी का काम फाइनल स्टेज में है। इसके लिए जिन यूनिवर्सिटीज के पास टेक्नलॉजी और संसाधन नहीं हैं, उनके लिए एजुटेक कंपनियों से बातचीत भी कर रहे हैं। NEP के तहत इंस्टिट्यूशनल डिवेलपमेंट प्लान के ड्राफ्ट में 50 फीसद कॉन्ट्रैक्चुअल/विजिटिंग फैकल्टी की बात की गई है। टीचर-स्टूडेंट का रेश्यो भी कम किया गया है। क्या इससे एजुकेशन क्वॉलिटी पर असर नहीं पड़ेगा? हमारे पास काफी परमानेंट पोस्ट्स खाली हैं। ज्यादातर आईआईटी में 30 फीसद और सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 30 से 40 फीसद पोस्ट खाली हैं। कितनी जल्दी ये पोस्ट्स भरी जा सकती हैं, यह हाई क्वॉलिटी पीएचडी कैंडिडेट्स के मिलने पर निर्भर करता है। इस वजह से हमें कॉन्ट्रैक्चुअल फैकल्टी की भी जरूरत है। हम ऐसे लोगों से तो इन्हें नहीं भर सकते जो एक क्लास भी ना ले सकें! देश में क्वॉलिटी पीएचडी स्टूडेंट्स की संख्या कम है, यह हमारे लिए एक चुनौती है। यूजीसी ने मिनिमम स्टैंडर्ड तय किए हैं, मगर स्टूडेंट्स को इससे काफी ऊपर जाने की जरूरत है। इसके लिए सभी इंस्टिट्यूट में रिसर्च सुविधाओं और फंड की भी जरूरत है। इसमें हाई क्वॉलिटी इंस्टिट्यूट बाकी इंस्टिट्यूट्स के साथ अपनी रिसर्च सुविधाएं, महंगे इक्विपमेंट साझा कर मदद कर सकते हैं। आईआईटी, जेएनयू ऐसा करते हैं। टीचर स्टूडेंट रेश्यो भी क्वॉलिटी बनाए रखते हुए ही तय किया जाएगा। कोविड-19 डिजिटल एजुकेशन लेकर आया। NEP भी इसे प्रमोट कर रही है। बजट में भी डिजिटल एजुकेशन पर फोकस है। आपको नहीं लगता कि देश में बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स ऐसे हैं जिनके पास लैपटॉप, इंटरनेट और बिजली जैसे संसाधन नहीं हैं? आज भारत में लोगों को औसतन 20-22 घंटे बिजली मिलती है, तो बिजली दिक्कत नहीं है। यह स्टडी एशिया की एक बड़ी एजेंसी की है। इंटरनेट कनेक्टिविटी पर TRAI का कहना है कि देश में 850 मिलियन लोगों के पास इंटरनेट कनेक्टिविटी है। ज्यादातर युवाओं के पास यह सुविधा है। कनेक्टिविटी हर महीने बढ़ती भी जा रही है। मसलन, भारत नेट फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क तेजी से फैलाया जा रहा है। हम हर ग्राम पंचायत को जोड़ रहे हैं। हां! मैं मानता हूं कि लैपटॉप/कंप्यूटर की दिक्कत है, मगर जिस तेजी से तकनीक पर काम हो रहा है, कुछ ही सालों में हम साधारण स्मार्टफोन की कीमत पर ये डिवाइस भी पा सकेंगे। हम डिजिटल यूनिवर्सिटी और डिजिटल एजुकेशन को बढ़ाने के लिए तब तक इंतजार नहीं कर सकते, जब तब हर एक को सभी संसाधन ना मिल जाएं। NEP हायर एजुकेशन कमिशन ऑफ इंडिया भी ला रही है। इसमें UGC मर्ज हो जाएगा। यूजीसी के रोल में कितना फर्क पड़ेगा? AICTE, UGC जैसी सभी बॉडी इसमें मर्ज हो जाएगी। इसके चार पिलर होंगे- एक, इंस्टिट्यूट को रेग्युलेट करेगा, दूसरा स्टैंटर्ड सेट करेगा, तीसरा फंडिंग और चौथा एक्रिडिटेशन देगा। यह जब भी होगा, यूजीसी इसके लिए ग्राउंड वर्क पहले ही पूरा करेगी। जेएनयू में आपके कार्यकाल के दौरान कई प्रदर्शन भी हुए। अब आप देशभर की यूनिवर्सिटी संभाल रहे हैं। जेएनयू का अनुभव यूजीसी में कितना काम आएगा? प्रदर्शन एक तरह से फीडबैक होते हैं और यह मुझे जेएनयू में मिलते रहे। इससे मुझे स्टूडेंट्स की दिक्कतों को समझने का मौका मिला और हम जेएनयू में कई नई चीजें लाने में भी सफल हुए। हमने वहां इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के स्कूल भी शुरू किए। अगर प्रदर्शन सही तरीके से हों, हिंसक ना हों, तो उनमें कोई बुराई नहीं है। वे सभी अनुभव हमेशा मददगार रहेंगे। कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर क्या कहेंगे? इस पर मैं कुछ नहीं कहूंगा। मगर मैं जेएनयू से आया हूं तो यह जरूर कहूंगा कि वहां किसी तरह का ड्रेस कोड नहीं है। कैंपस में कपड़े स्टूडेंट्स की पसंद, जगह और मौसम के हिसाब से हो सकते हैं। कोविड की तीसरी लहर के बाद देशभर के कैंपस खोलने को लेकर आपकी क्या राय है? मुझे लगता है कैंपस, हॉस्टल खोलने का समय आ गया है। राज्यों की गाइडलाइंस के हिसाब से इंस्टिट्यूट को खुद इस पर फैसला लेना चाहिए। स्टूडेंट्स का काफी नुकसान हो चुका है।
Source navbharattimes

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