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नोटा से भी पीछे रहे नेता जी, पिछले चुनाव में कई जगह चौथे और पांचवें पायदान पर रहा NOTA

लखनऊ: चुनाव में बहुतेरे लोग नोटा बटन दबाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunav) में तो कई इलाकों में नोटा (NOTA) ने कई प्रत्याशियों को पीछे धकेल दिया। चुनाव परिणाम आने पर नोटा चौथे से लेकर सातवें पायदान पर नजर आया तो कई प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले। इस बार विधानसभा चुनाव में फिर गली-गली उम्मीदवारों के दावे गूंजने लगे हैं। मुफ्त में मूलभूत सुविधाएं देने से लेकर विकास के भी बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। इस बीच पिछले वादे पूरे न होने से आहत कई मतदाता 'नोटा' पर नजरें गड़ाए हैं। बसपा 534 वोट से हारी, नोटा को मिले 3471 वोट मोहनलालगंज विधानसभा में बसपा के उम्मीदवार रिटायर्ड आईएएस राम बहादुर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के अम्ब्रीश पुष्कर से सिर्फ 534 वोटों से हार गए थे। सपा उम्मीदवार को 71454 वोट और बसपा उम्मीदवार को 70967 वोट मिले थे। वहीं, 3471 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। पिछले विधानसभा चुनाव में चर्चा रही कि नोटा पर जाने के बजाय अगर कुछ उम्मीदवार बसपा की तरफ मुड़े होते तो शायद चुनाव परिणाम बसपा के पक्ष में जा सकता था। सबसे पहले अमेरिका में इस्तेमाल सबसे पहले 1976 में अमेरिका के कैलीफोर्निया में इस्ला विस्टा म्युनिसिपल अडवाइजरी काउंसिल के चुनाव में नोटा का इस्तेमाल हुआ। अमेरिका में इसके लिए 'नन ऑफ दीज कैंडिडेट' शब्द का इस्तेमाल होता है, जबकि यूक्रेन में इसे 'अगेंस्ट ऑल' और स्पेन में 'ब्लैक बैलट' कहा जाता है। भारत में इसका मतलब है- 'नन ऑफ द अबव'। देश में साल 2013 में शुरुआत नोटा को साल 2013 में छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल किया गया। इन राज्यों में 1.85 प्रतिशत लोगों ने नोटा दबाया। इसके बाद साल 2014 में 8 राज्यों की विधानसभा चुनाव में नोटा का वोट प्रतिशत 0.95% रहा। मतदाताओं के लिए अवसर है 'नोटा' राजनीति शास्त्री एके द्विवेदी कहते हैं कि 'नोटा' मतदाताओं के लिए एक अवसर है। अगर वे किसी भी उम्मीदवार को उपयुक्त नहीं मानते तो नोटा दबा सकते हैं, हालांकि लोग अब भी इसका इस्तेमाल कम कर रहे हैं। दरअसल, लोगों की सोच है कि चुनाव दोबारा न हो, ताकि आर्थिक बोझ न बढ़े। ऐसे में ज्यादाकर मतदाता चाहते हुए भी इसका लाभ नहीं उठा रहे। हवाई वादों पर विचार कर लेंगे फैसला आशियाना निवासी आसिफ का कहना है कि चुनाव में हर पार्टी के उम्मीदवार हवाई वादे कर रहे हैं। पार्टियों ने घोषणा पत्र भी जारी कर दिया है। जनता हवाई वादों से तंग आ चुकी हैं। मतदान के दिन फैसला करेंगे कि उम्मीदवार को वोट दें या 'नोटा' को चुनें। टूड़ियागंज में रहने वाले मुन्ना कहते हैं कि पिछली बार नेता जी मोहल्ले में आए थे। दावा किया था कि पूरे इलाके में सीवर लाइन पड़ जाएगी। इस बार दूसरे नेता जी ने वादा किया है कि ऐसी व्यवस्था होगी कि मई-जून में पानी की किल्लत नहीं होगी। यह जादू होगा कैसे? यह किसी ने नहीं बताया। मतदान के दिन वोटरों का जादू 'नोटा' पर भी चल सकता है।
Source navbharattimes

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