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दूसरा भिंडरावाले बर्दाश्त नहीं! अमित शाह के सिग्नल पर ताबड़तोड ऐक्शन लेने लगी पंजाब पुलिस

नई दिल्ली/अमृतसर: वही स्टाइल, वैसी ही वेशभूषा, हूबहू सोच... अमृतपाल सिंह को देखकर लोगों को 30 साल का वो शख्स याद आने लगा था जिसने 40 साल पहले पंजाब को आतंक का गढ़ बना दिया था। नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। आजादी के साल जन्मा जरनैल जब सिख धर्म की शिक्षा देने वाली संस्था दमदमी टकसाल का अध्यक्ष बना तो उसके नाम के आगे जुड़ गया भिंडरावाले। कुछ ही महीनों में पंजाब में अजीब सा माहौल पैदा हो गया। 1978 में झड़प में कई लोगों की मौत हुई। भिंडरावाले भड़काऊ भाषण देने लगा था। 1981 में लाला जगत नारायण की हत्या होती है लेकिन भिंडरावाले खुलेआम घूमता रहा। 1983 में डीआईजी अटवाल को गोली मार दी जाती है। पंजाब रोडवेज की बस में हिंदुओं को गोलियों से छलनी कर दिया गया। तब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसी दौरान भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया। अकाल तख्त से वह भाषण देने लगा। आखिरकार इंदिरा सरकार ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' पर मुहर लगा दी। उस दौर में जो कुछ भी रक्तपात हुआ, उसकी एक ही वजह थी भिंडरावाले। पूरे देश में उथल-पुथल मची। पता चला था कि कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने वाली है और भिंडरावाले के मंसूबे को कामयाब होने से रोकने के लिए उसका पकड़ा जाना जरूरी था। जून 1984 में सेना ने स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी की। पंजाब आने वाली ट्रेनें और बसें रोक दी गईं। फोन बंद थे और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर रोक दिया गया। 3 जून को पंजाब में कर्फ्यू लगा और अगले 48 घंटे में सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक स्वर्ण मंदिर के बाहर थे। 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया लेकिन काफी खून बहा। सरकार के इस ऐक्शन पर सिख समुदाय काफी नाराज हुआ। कई सिख नेताओं के इस्तीफे भी हुए। हालांकि इस ऑपरेशन में सेना के 83 जवान भी शहीद हुए थे। 1500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था। Source navbharattimes

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