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​कानपुर ने कमाया और लखनऊ ने उड़ाया... PM मोदी के पूर्व सलाहकार ने बताई इनसाइड स्टोरी

'कानपुर को हम 'मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट' बोलते थे क्योंकि वहां कई मिलें थीं जो अंग्रेजों ने लगाई थीं। वो बहुत जबर्दस्त टेक्स्टाइल का एक सेंटर बना जैसे मुंबई। 70 के दशक में जब राष्ट्रीयकरण हुआ टेक्स्टाइल इंडस्ट्री का तो उनकी हालत बद से बदतर होती चली गई। बाद में यूनियनबाजी हुई तो उस चक्कर में और ठप पड़ गया। आज आलम यह है कि 9 में से 7 टेक्स्टाइल मिल्स बंद हो गई हैं। बीच में कुछ रिफॉर्म्स हुए तो और शहरों ने उसे स्वीकार कर लिया लेकिन कानपुर उन बदलाव को एडॉप्ट नहीं कर पाया पावरलूम वगैरह को लेकर। आप देखिए बॉम्बे में भी टेक्स्टाइल मिल्स थीं। लेकिन 70 के दशक से आप देखेंगे...वास्तव में हर अच्छे शहर की विशेषता होती है जो इकोनॉमिक पावरहाउस होते हैं कि वे समय रहते अपने इकोनॉमिक स्ट्रक्चर बदलते रहते हैं। इसलिए बॉम्बे आगे निकल गया और कानपुर पीछे रह गया। अब आप देखिए कि बॉम्बे में स्टॉक मार्केट आया, फाइनेंशियल कैपिटल बन गया, ऐसे ही अलग-अलग इंडस्ट्री आई। आप सिंगापुर भी देखेंगे 60 के दशक से लेकर आज तक तो सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग इनोवेशन पर बैठे हैं। एक समय पर वह ट्रेडिंग हब था, उससे पहले वे कुछ मैन्यूफैक्चरिंग भी करते थे। जो भी अच्छी परफॉर्मेंस सिटीज हैं वो हमेशा विकसित होती रहती हैं। Source navbharattimes

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